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शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - Research Hypothesis – Definition, Nature and Types
शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - research hypothesis – definition, nature and types, शोध परिकल्पना.
परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता है। बिना परिकल्पना के अनुसन्धा उद्देश्यहीन तथा बिन्दुहीन होता जाता है। बिना किसी अच्छे अर्थ के परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं इसलिये परिकल्पना का आकार मिश्रित तथा कठिन तथा लाभ से परिपूर्ण होता है। परिकल्पना का स्वरूप बड़ा एवं करीब होने पर इसके आकार को रद्दो बदल कर अनुसन्धान के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं किया जायेगा तो अनुसन्धानकर्ता अनावश्यक एवं तथ्यहीन आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।
शोध परिकल्पना :
परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।
परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाषीकरण के पश्चात् उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है, अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है, यह निश्चित करने के पश्चात उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है। अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है। वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है।
परिकल्पना की परिभाषा :
परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। जो निम्न है।
करलिंगर ( Kerlinger) - "परिकल्पना को दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन मानते हैं।"
मोले (George G. Mouley ) - "परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करना है।"
गुड तथा हैट (Good & Hatt ) - "परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है। परिकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है, और गलत भी।"
लुण्डबर्ग (Lundberg ) - "परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है।"
मैकगुइन (Mc Guigan ) - "परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य कथन है।
अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जाँच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।
परिकल्पना की प्रकृति :
किसी भी परिकल्पना की प्रकर्षत निम्न रूप में हो सकती है। -
1. यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये ।
2. इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की ओर केन्द्रित करना चाहिए।
3. इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।
4. यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।
5. यह प्रकर्षत के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए।
परिकल्पना के स्रोत :
परिकल्पनाओं के मुख्य स्रोत निम्नवत है।
समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन
समस्या सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
विज्ञान -
विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।
संस्कृति -
संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कर्षतिक मूल्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं का जन्म होता है।
व्यक्तिगत अनुभव
व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार होता है, किन्तु नये अनुसंध नकर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही सम्पन्न होता है, उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही सरलता होती है।
रचनात्मक चिंतन -
यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं (i) तैयारी
(ii) विकास
(iii) प्रेरणा और
(iv) परीक्षण | अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास
किया, उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली, परिकल्पना निर्माण और परीक्षण किया।
अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -
अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
पूर्व में हुए अनुसंधान
सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना का सब्जन किया जा सकता है।
उत्तम परिकल्पना की विशेषताएं या कसौटी :
एक उत्तम परिकल्पना की निम्न विशेषतायें होती हैं -
परिकल्पना जाँचनीय हो
एक अच्छी परिकल्पना की पहचान यह है कि उसका प्रतिपादन इस ढंग से किया जाये कि उसकी जाँच करने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सके कि परिकल्पना सही है या गलत । इसके लिये यह आवश्यक है कि परिकल्पना की अभिव्यक्ति विस्तष्त ढ़ंग से न करके विशिष्ट ढंग से की जाये। अतः जाँचनीय परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसे विश्वास के साथ कहा जाय कि वह सही है या गलत ।
परिकल्पना मितव्ययी हो
परिकल्पना की मितव्ययिता से तात्पर्य उसके ऐसे स्वरूप से है जिसकी जाँच करने में समय, श्रम एवं धन कम से कम खर्च हो और सुविधा अधिक प्राप्त हो।
परिकल्पना को क्षेत्र के मौजूदा सिद्धान्तों तथा तथ्यों से सम्बन्धित होना चाहिए
कुछ परिकल्पना ऐसी होती है जिनमें शोध समस्या का उत्तर तभी मिल पाता है जब अन्य कई उप कल्पनायें (Sub-hypothesis) तैयार कर ली जाये। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उनमें तार्किक पूर्णता तथा व्यापकता के आधार के अभाव होते हैं जिसके कारण वे स्वयं कुछ नयी समस्याओं को जन्म दे देते हैं और उनके लिये उपकल्पनायें तथा तदर्थ पूर्वकल्पनायें (adhoc assumptions) तैयार कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी अपूर्ण परिकल्पना की जगह तार्किक रूप से पूर्ण एवं व्यापक परिकल्पना का चयन करते हैं।
परिकल्पना को किसी न किसी सिद्धान्त अथवा तथ्य अथवा अनुभव पर आधारित होना चाहिये
• परिकल्पना कपोल कल्पित अथवा केवल रोचक न हो। अर्थात् परिकल्पना ऐसी बातों पर आधारित न हो जिनका कोई सैद्धान्तिक आधार न हो। जैसे - काले रंग के लोग गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा अधिक विनम्र होते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना आधारहीन परिकल्पना है क्योंकि यह किसी सिद्धान्त या मॉडल पर आधारित नहीं है।
परिकल्पना द्वारा अधिक से अधिक सामान्यीकरण किया जा सके
परिकल्पना का अधिक से अधिक सामान्यीकरण तभी सम्भव है जब परिकल्पना न तो बहुत व्यापक हो और न ही बहुत विशिष्ट हो किसी भी अच्छी परिकल्पना को संकीर्ण ( narrow) होना चाहिये ताकि उसके द्वारा किया गया सामान्यीकरण उचित एवं उपयोगी हो ।
परिकल्पना को संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होना चाहिए
संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होने का अर्थ है परिकल्पना व्यवहारिक एवं वस्तुनिष्ठ ढंग से परिभाषित हो तथा उसके अर्थ से अधिकतर लोग सहमत हों । ऐसा न हो कि परिभाषा सिर्फ व्यक्ति की व्यक्गित सोच की उपज हो तथा जिसका अर्थ सिर्फ वही समझता हो।
इस प्रकार हम पाते हैं कि शोध मनोवैज्ञानिक ने शोध परिकल्पना की कुछ ऐसी कसौटियों या विशेषताओं का वर्णन किया है जिसके आधार पर एक अच्छी शोध परिकल्पना की पहचान की जा सकती है।
परिकल्पना के प्रकार
मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्र तथा शिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं द्वारा बनायी गयी परिकल्पनाओं के स्वरूप पर यदि ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उसे कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है। शोध विशेषज्ञों ने परिकल्पना का वर्गीकरण निम्नांकित तीन आधारों पर किया है -
चरों की संख्या के आधार पर -
साधारण परिकल्पना साधारण परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना - से है जिसमें चरों की संख्या मात्र दो होती है और इन्ही दो चरों के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण स्वरूप बच्चों के सीखने में पुरस्कार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहाँ सीखना तथा पुरस्कार दो चर है जिनके बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की है। इस प्रकार परिकल्पना साधारण परिकल्पना कहलाती है।
जटिल परिकल्पना - जटिल परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें दो से अधिक चरों के बीच आपसी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी माध्यम के निम्न उपलब्धि के विद्यार्थियों का व्यक्तित्व हिन्दी माध्यम के उच्च उपलब्धि के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है । इस परिकल्पना में हिन्दी अंग्रेजी माध्यम निम्न उच्च उपलब्धि स्तर एवं व्यक्तित्व तीन प्रकार के चर सम्मिलित हैं अतः यह एक जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।
चरों की विशेष सम्बन्ध के आधार पर
मैक्ग्यूगन ने (Mc. Guigan, 1990) ने इस कसौटी के आधार पर परिकल्पना के मुख्य दो प्रकार बताये हैं।
Ii) सार्वत्रिक या सार्वभौमिक परिकल्पना -
सार्वत्रिक परिकल्पना से स्वयम् स्पष्ट होता है कि ऐसी परिकल्पना जो हर क्षेत्र और समय में समान रूप से व्याप्त हो अर्थात् परिकल्पना का स्वरूप ऐसा हो जो निहित चरों के सभी तरह के मानों के बीच के सम्बन्ध को हर परिस्थित में हर समय बनाये रखे। उदाहरण स्वरूप- पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें बताया गया सम्बन्ध अधिकांश परिस्थितियों में लागू होता है।
(ii) अस्तित्वात्मक परिकल्पना
इस प्रकार की परिकल्पना यदि सभी - व्यक्तियों या परिस्थितियों के लिये नही तो कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति के लिये निश्चित रूप से सही होती है। जैसे सीखने की प्रक्रिया में कक्षा में कम से कम एक बालक ऐसा है पुरस्कार की बजाय दण्ड से सीखता है इस प्रकार की परिकल्पना अस्तित्वात्मक परिकल्पना है।
विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर
विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना के निम्न तीन प्रकार है।
(i) शोध परिकल्पना - इसे कार्यरूप परिकल्पना या कार्यात्मक परिकल्पना भी कहते हैं। ये परिकल्पना किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित या प्रेरित होती है। शोधकर्ता इस परिकल्पना की उदघोषणा बहुत ही विश्वास के साथ करता है तथा उसकी यह अभिलाषा होती है कि उसकी यह परिकल्पना सत्य सिद्ध हो उदाहरण के लिये 'करके सीखने' से प्राप्त अधिगम अधिक सुदृढ़ होता है और अधिक समय तक टिकता है।' चूँकि इस परिकल्पना में कथन 'करके सीखने के सिद्वान्त पर आधारित है अतः ये एक शोध परिकल्पना है।
शोध परिकल्पना दो प्रकार की होती है-
दिशात्मक एवं अदिशात्मक |
दिशात्मक परिकल्पना में परिकल्पना किसी एक दिशा अथवा दशा की ओर इंगित करती है जब कि अदिशात्मक परिकल्पना में ऐसा नही होता है।
उदाहरण- "विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि एवं कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि में अन्तर है।"
उपरोक्त परिकल्पना अदिशात्मक परिकल्पना का उदाहरण हैं।
क्योंकि बुद्धि में अन्तर किसका कम या ज्यादा है इस ओर संकेत नहीं किया गया। इसी परिकल्पना को यदि इस प्रकार लिखा जाय कि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि कला वर्ग के छात्रों की अपेक्षा कम होती है अथवा कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि से कम है तो यह एक दिशात्मक शोध परिकल्पना होगी क्योंकि इसमें कम या अ क एक दिशा की ओर संकेत किया गया है।
(ii) शून्य परिकल्पना
शून्य परिकल्पना शोध परिकल्पना के ठीक विपरीत होती है। इस परिकल्पना के माध्यम से हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं होने के संबंध का उल्लेख करते हैं। उदाहरण स्वरूप उपरोक्त परिकल्पना को नल परिकल्पना के रूप में निम्न रूप से लिखा जा सकता है विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि एंव कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि में कोई अंतर नहीं है। एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि, "व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी सीखता है तो इस परिकल्पना की शून्य परिकल्पना यह होगी कि 'व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी नहीं सीखता है। अतः उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से शून्य अथवा नल परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
(iii) सांख्यिकीय परिकल्पना
जब शोध परिकल्पना या शून्य परिकल्पना - का सांख्यिकीय पदों में अभिव्यक्त किया जाता है तो इस प्रकार की परिकल्पना सांख्यिकीय परिकल्पना कहलाती है। शोध परिकल्पना अथवा सांख्यिकीय परिकल्पना को सांख्यिकीय पदों में व्यक्त करने के लिये विशेष संकेतों का प्रयोग किया जाता है। शोध परिकल्पना के लिये H, तथा शून्य परिकल्पना के लिये H का प्रयोग होता है तथा माध्य के लिये X का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण- यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह 'क' बुद्धिलब्धि में समूह 'ख' से श्रेष्ठ है तो इसकी सांख्यिकीय परिकल्पना H तथा H के पदों में निम्नानुसार होगी -
H1 : Xa > Xb
H0 : Xa = Xb
यहाँ पर माध्य X का प्रयोग इसलिये किया गया है क्योंकि एक दूसरे से बुद्धि लब्धि की श्रेष्ठता जानने के लिये दोनो समूहों की बुद्धि लब्धि का मध्यमान जानना होगा जिसके आधार पर श्रेष्ठता की माप की जा सकेगी।
इस प्रकार एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह क की बुद्धि लब्धि एवं समूह 'ख' की बुद्धि लब्धि में अन्तर है तो इसकी H एवं H, इस प्रकार होगी।
H1 : Xa "" X b
H0 : Xa = X b
इस प्रकार विभिन्न प्रकार से शोध परिकल्पना का वर्गीकरण किया जा सकता है।
परिकल्पना के कार्य
अनुसन्धान कार्य में परिकल्पना के निम्नांकित कार्य है :
दिशा निर्देश देना
परिकल्पना अनुसंधानकता को निर्देशित करती है। इससे यह ज्ञात होता है कि अनुसन्धान कार्य में कौन कौन सी क्रियायें करती हैं एवं कैसे करनी है। अतः परिकल्पना के उचित निर्माण से कार्य की स्पष्ट दिशा निश्चित हो जाती है।
प्रमुख तथ्यों का चुनाव करना
परिकल्पना समस्या को सीमित करती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के चुनाव में सहायता करती है। किसी भी क्षेत्र में कई प्रकार की समस्यायें हो सकती है लेकिन हमें अपने अध्ययन में उन समस्याओं में से किन पर अध्ययन करना है उनका चुनाव और सीमांकन परिकल्पना के माध्यम से ही होता है।
पुनरावृत्ति को सम्भव बनाना
पुनरावृत्ति अथवा पुनः परीक्षण द्वारा अनुसन्धान के निष्कर्ष की सत्यता का मूल्यांकन किया जाता है। परिकल्पना के अभाव में यह पुनः परीक्षण असम्भव होगा क्यों कि यह ज्ञात ही नहीं किया जा सकेगा किस विशेष पक्ष पर कार्य किया गया है तथा किसका नियंत्रण करके किसका अवलोकन किया गया है।
निष्कर्ष निकालने एवं नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन करना -
परिकल्पना अनुसंधानकर्ता को एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता करती है तथा जब कभी कभी मनोवैज्ञानिकों को यह विश्वास के साथ पता होता है कि अमुक घटना के पीछे क्या कारा है तो वह किसी सिद्धान्त की पष्ठभूमि की प्रतीक्षा किये बिना परिकल्पना बनाकर जाँच लेते हैं। परिकल्पना सत्य होने पर फिर वे अपनी पूर्वकल्पनाओं परिभाषाओं और सम्प्रत्ययों को तार्किक तंत्र में बांधकर एक नये सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देते है।
अतः उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम परिकल्पनाओं के क्या मुख्य कार्य है आदि की जानकारी स्पष्ट रूप से प्राप्त कर सकते हैं. किसी भी शोध परिकल्पना से तात्पर्य समस्या समाधान के लिये सुझाया गया वो उत्तर हैं जो दो या दो से अधिक चरों के बीच क्या और कैसा सम्बन्ध T है बताता है। शोध परिकल्पना को प्राप्त करने के कई स्रोत है व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सजग रहकर अपनी सूझ द्वारा इसे आसानी से प्राप्त कर सकता है। उत्तम परिकल्पनाओं की विशेषताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। साथ ही परिकल्पनाओं के प्रकार को भी समझाया गया है।
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परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या होती है । परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप प्रकार | Hypothesis Definition Types in Hindi
परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या होती है what is hypothesis details in hindi, परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस क्या है , परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस- प्रस्तावना ( introduction).
शोध-समस्या का अन्तिम रूप से निर्णय हो जाने के पश्चात् उसके समाधान की प्रक्रिया का आरंभ अर्थात् शोध-सामग्री का संग्रह किया जाना आरंभ होता है , परन्तु शोध-सामग्री का संग्रह आरंभ करने से पूर्व यह निश्चित कर लेना आवश्यक होता है कि इसके लिए किन दिशाओं में जाना होगा। इन दिशाओं की ओर संकेत करने वाले सूत्र उन परिकल्पनाओं में निहित रहते हैं , जिनका निर्माण अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययनजनित ज्ञान , कल्पना एवं सृजनशीलता के आधार पर करता है। परिकल्पनाओं के अभाव में उसे शोध-सामग्री के संग्रह हेतु इधर-उधर भटकना पड़ेगा , जिससे उसके समय एवं शक्ति का अपव्यय होगा। अतः प्रायः सभी शोधकर्ता यह स्वीकार करते हैं कि जहाँ तक सम्भव हो , अनुसंधान का आरम्भ परिकल्पना से ही किया जाना चाहिए , क्योंकि वान डालेन के शब्दों में ,
" परिकल्पनाएँ अनुसंधान पथ में प्रकाश-स्तम्भ का कार्य करती हैं " ।
परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप (Meaning and Structure of Hypothesis)
जब किसी व्यक्ति के समक्ष कोई कठिनाई उत्पन्न हो जाती है , तो वह उसके निवारण के उपाय भी सोचने लगता है। फलस्वरूप , जो उपाय उसके मस्तिष्क में आते हैं , वे ही समस्या के सम्भावित समाधान होते हैं। यह दूसरी बात है कि वे बाद में सत्य सिद्ध न हों अथवा सत्य सिद्ध हों।
उदाहरण के लिए , एक छात्र परीक्षा में बार-बार असफल घोषित होता है। इसका क्या कारण है , यह जानने के लिए अनुसंधान हेतु उसे मनोवैज्ञानिक को सौंप दिया जाता है। समस्या के समाधान हेतु मनोवैज्ञानिक उसके असफल होने के कारणों की कल्पना करता है।
- हो सकता है उसमें बुद्धि का अभाव हो।
- हो सकता है वह पढ़ने-लिखने में पहले से ही कमजोर हो।
- हो सकता है वह परीक्षा के समय अस्वस्थ हो गया हो , हो सकता है उसकी पढ़ने-लिखने में रुचि न हो। आदि
कितनी ही परिकल्पनाएँ सम्भव हो सकती हैं। इनमें से कौन सत्य तथा कौन असत्य है , यह तो बाद में परीक्षण द्वारा ही पता लगेगा। इस प्रकार परिकल्पनाएँ एक प्रकार से समस्या के सम्भावित समाधान होती हैं।
यदि समस्या को प्रश्न के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। (जैसे , छात्र बार-बार असफल क्यों होता है ?) तो ये परिकल्पनाएँ इस प्रश्न के सम्भावित उत्तर समझे जा सकते हैं , परन्तु वैज्ञानिक अनुसंधान का आरंभ इसी बिन्दु से होता है।
परिकल्पना अंग्रेजी भाषा के शब्द ' हाइपोथिसिस ' (hypothesis) का हिन्दी रूपांतर है , जिसका अर्थ है ऐसी मान्यता ( T hesis ) जो अभी अपुष्ट ( H ypo) है।
हौडनेट के शब्दों में परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस
परिकल्पनाएँ शोधकर्ता की आँखें होती हैं जिनके द्वारा वह समस्यागत अव्यवस्था (अव्यवस्थित तथ्यों) में झाँककर देखता है तथा उनमें समस्या का समाधान खोजता है।
वान डालेन के अनुसार परिकल्पना अथवा हाइपोथिसिस
परिकल्पना शोधकर्ता का समस्या के समाधान अथवा समस्यात्मक प्रश्न के उत्तर के विषय में एक बुद्धिमत्तापूर्ण अनुमान ( intelligent guess) होती है। वह परिकल्पना को समस्या का ऐसा समाधान मानते हैं , जो केवल एक सुझाव के रूप में होता है।
परिकल्पना दो या दो से अधिक चरों के बीच संबंध के विषय में एक प्रकार का कल्पनाजन्य कथन होती है।
जैसे बुद्धि बालकों की शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करती है। यह एक परिकल्पना है। इसमें बुद्धि एवं शैक्षिक उपलब्धि के बीच एक विशिष्ट प्रकार के संबंध की कल्पना की गई है। जब कोई समस्या व्यक्ति के समक्ष उत्पन्न होती है और उसका समाधान खोजने का वह प्रयास करता है , तो पहले अपने ज्ञान , अनुभव , अध्ययन आदि के आधार पर कल्पना करता है कि उसका संभव समाधान क्या हो सकता है। इसी प्रकार जब किसी प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करता है , तो पहले कल्पना करता है कि उसका सम्भावित उत्तर क्या हो सकता है। इन सम्भावित समाधानों , सम्भावित उत्तरों को वह सामान्यानुमानों ( generalizations) के रूप में प्रस्तुत करता है तथा बाद में यह परीक्षण करता है कि वे कहाँ तक सत्य हैं। ये सामान्यानुमान ही परिकल्पनाएँ कहलाती हैं।
इस प्रकार बेस्ट ( 1977) के शब्दों में
परिकल्पना एक ऐसा पूर्वानुमान ( inference) होती है , जिसका निर्माण वस्तुस्थिति , घटनाओं एवं परिस्थितियों की व्याख्या करने हेतु अस्थायी रूप से किया जाता है और जो अनुसंधान कार्य को आगे बढ़ाने में सहायता करती है अर्थात् बाद में परीक्षण के द्वारा यदि वह सत्यापित हो जाती है तो समस्या का समाधान हो जाता है तथा वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाती है।
प्रतिदिन ही हम अपने दैनिक जीवन में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान इसी प्रकार (अर्थात् परिकल्पना का निर्माण और फिर उसका परीक्षण) करते हैं।
कमरे में जल रहा बल्ब अचानक बुझ जाता है ,
तुरंत व्यक्ति स्वयं से पूछता है " क्या हुआ ?
एक समस्या उत्पन्न हुई है। इस समस्या का समाधान , उस प्रश्न का उत्तर पाने हेतु वह एक-एक परिकल्पना का निर्माण करता है और उसका परीक्षण करता है। अन्त में उसे वस्तुस्थिति स्पष्ट हो जाती है।
पहले अनुमान लगाता है अर्थात् परिकल्पना का निर्माण करता है " सम्भवतः स्रोत से ही विद्युत गई है। " वह बाहर निकल कर और घरों की ओर देखता है तथा पाता है कि और सबके घरों में तो बिजली आ रही है। अतः यह परिकल्पना असत्य सिद्ध हो जाती है
तब दूसरी परिकल्पना करता है " अपने घर का ही फ्यूज तो नहीं उड़ गया " । वह कट आउट निकालकर फ्यूज का परीक्षण करता है तथा पाता है कि उसमें कोई खराबी नहीं है। यह परिकल्पना भी असत्य सिद्ध होती है।
तब वह तीसरी परिकल्पना का निर्माण करता है " बल्ब तो फ्यूज नहीं हो गया " बल्ब का परीक्षण करने पर पाता है कि वह फ्यूज हो गया है। यह परिकल्पना सत्य सिद्ध होती है।
इससे बिन्दु पर पहुँचकर समस्या का समाधान भी हो सकता है तथा सम्पूर्ण स्थिति स्पष्ट हो जाती है। सभी समस्याओं के समाधान खोजने के पीछे यही प्रक्रिया रहती है तथा उसमें परिकल्पनाओं (पूर्वानुमानों , सम्भावित उत्तरों एवं समाधानों) की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। अनुसंधान भी समस्या समाधान की ही एक विशिष्ट एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। अत: अनुसंधान में भी परिकल्पनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।जो ज्ञातव्य है , उसके विषय में ' क्या है ', ' क्यों है '. इस विषय में पूर्वानुमान लगाना ही परिकल्पना होती है।
परिकल्पना के प्रकार ( Types of Hypothesis)
सामान्यतः परिकल्पना के छह रूप हैं और वे हैं-
1. सरल परिकल्पना
2. जटिल परिकल्पना
3. दिशात्मक परिकल्पना
4. गैर-दिशात्मक परिकल्पना
5. शून्य परिकल्पना
6. साहचर्य और आकस्मिक परिकल्पना
परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप प्रकार
परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य अनुसंधान में परिकल्पना भूमिका
परिकल्पना या उपकल्पना के प्रकार
उच्च शिक्षा प्रणाली-आधुनिक भारतीय विश्वविद्यालयों को संगठन और प्रशासन
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हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के १२४ वे उन्मुखी कार्यक्रम के सभी प्रतिभागियों के पीएच.डी. शोध प्रबंध में उल्लिखित परिकल्पनाएँ (Hypothesis), उद्देश्य (Objectives), एवं निष्कर्ष ( Findings) का स्वरुप : एक अवलोकन
- 1.1 प्रस्तावना एवं विषय चयन का महत्व
- 1.2 शोधकार्य का अंतर अनुशासनीय दृष्टि से महत्व (Interdisciplinary Approuch)
- 1.3 शोध विषय का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से महत्व
- 1.4 पुनरावलोकन (View of Research and Development in the Subject)
- 1.5 परियोजना की परिकल्पनाएँ (Hypothesis)
- 1.6 परियोजना के उद्देश्य (Objectives)
- 1.7 शोधकार्यों में उल्लिखित परिकल्पनाएँ (Hypothesis) : अवलोकन
- 1.8 उद्देश्य एवं निष्कर्ष : एक अवलोकन
डॉ. रमा प्रकाश नवले
डॉ. प्रेरणा पाण्डेय
डॉ. मंजु पुरी
प्रस्तावना एवं विषय चयन का महत्व
पिछले कई सालों से अध्ययन – अध्यापन करते समय तथा शोधार्थियों से शोध कार्य करवाते समय यह ध्यान में आया कि शोधार्थी अनुसंधान प्रविधि से परिचित नहीं होता| यदि अनुसंधान प्रविधि से परिचित होता है तो परिकल्पनाओं (Hypothesis) के बारे में वह जानता नहीं है| परिकल्पनाएँ अर्थात क्या? परिकल्पनाओं का स्वरूप क्या होता है? परिकल्पनाएँ किस तरह लिखी जाती हैं? इन परिकल्पनाओं का शोधकार्य में क्या महत्व है? – इन सारी बातों के प्रति शोधकर्ता अनभिज्ञ होता है | शोधकार्य का प्रारंभ वास्तव में मन में उठी किसी जिज्ञासा, किसी प्रश्न या कोई समस्या से होता है| जिज्ञासा ही शोधार्थी को शोधकार्य करने के लिए बाध्य करती है| प्रश्न का उत्त्तर पाने की ललक शोधार्थी को चलाती है और समस्या का समाधान ढूँढे बिना शोधार्थी को शान्ति नहीं मिलती| परंतु यह अनुभव है कि न तो शोधार्थी के मन में कोई जिज्ञासा होती है, और न ही उनके मन में कुछ प्रश्न होते हैं और ना ही किसी समस्या को लेकर शोधार्थी निर्देशक के पास आता है| यह स्थिति अक्सर दिखाई देती है अपवादात्मक रूप में ही कोई शोधार्थी, वास्तविक शोधार्थी के रूप में दिखाई देता है| अनुसंधान में विषय चयन का बहुत महत्व होता है| यह एक लंबी प्रक्रिया भी है| शोधार्थी पहले कुछ पढ़े, उस विषय में उसकी रूचि बढे तब कही वह उस विषय पर शोध के बारे में सोच सकता है| शोधार्थी की किसी विषय के बारे में सोचने की प्रक्रिया शुरू होना शोध की पहली सीढ़ी है| पंजीकरण के पूर्व की यह प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है | सोचने की प्रक्रिया के कारण ही अनुसंधानकर्ता अपनी रूचि के क्षेत्र का चयन कर सकता है| अनुसंधान कर्ता को अपनी रूचि के क्षेत्र में अध्ययन करने की स्थिति इस प्रक्रिया से ही निर्माण हो सकती है और इसी प्रक्रिया के कारण उपर्युक्त प्रश्न उसके मन में निर्मित होते हैं| परन्तु वास्तविकता कुछ और ही होती है| शोधार्थी तो सीधे शोधनिर्देशक के पास पहुंचता है और शोधनिर्देशक से ही यह कहता है कि – “कोई आसान विषय आप ही दीजिए; ताकि शोधकार्य जल्दी से जल्दी पूरा हो जाए|” शोधनिर्देशक को भी अपने शोधार्थियों की संख्या बढ़ानी होती है | वह उसे विषय दे देता है और काम शुरू हो जाता है| शोधकार्य का प्रारंभ ही उचित पद्धति से न होने के कारण न वह परिकल्पनाएँ लिख पाता है और न वह जो कार्य करने जा रहा है उसका उद्देश्य क्या है इस बात का उसे पता चलता है| अनुसंधान में परिकल्पनाएँ उसके दिमाग में नहीं है, शोधकार्य के उद्देश्यों का भी पता नहीं है तब उसके कार्य में भटकाव आ जाता है| दिशा के अभाव में बार – बार शोध कार्य छोड़ देने की इच्छा बलवती होती है| कभी – कभी वह अनुसंधान कार्य पूरा कर नहीं पाता| शोधकार्य आनंद देने के बजाए नीरस और उबाऊ लगने लगता है| उपाधि पाना उसका लक्ष्य है| इसलिए जैसे तैसे वह काम पूरा कर लेता है| ऐसी स्थिति में शोध कार्य के निष्कर्ष स्पष्ट रूप में कैसे आ सकते है? निष्कर्ष भी वह लिख नहीं पाता| शोधप्रबंध जांचने की विधि एक अलग शोध का विषय हो सकता है| इस प्रकार के शोधप्रबंध कचरे के ढेर का हिस्सा बन जाते हैं| विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रविधि सुनिश्चित कराने के बावजूद इस प्रविधि के प्रति गंभीरता से न देखने के कारण शोधकार्य में भारत पिछड़ रहा है; यह बात सर्वविदित है| अनुसंधान में दुनिया के १३० देशों में भारत का स्थान कभी भी १०० के अंदर नहीं आ पाया है| यह चिंताजनक स्थिति है| शोध में सुधार हमारी अनिवार्यता है| इस कार्य के प्रति शोधकर्ताओं को अधिक सतर्क, सक्रिय, परिश्रमी, बनाने की दृष्टि से तथा निश्चित दिशा में काम करने की दृष्टि से प्रयास जरुरी हैं| यही वह प्रश्न है जिसके उत्तर ढूँढने का एक छोटा सा प्रयास इस कार्य द्वारा किया जाना है|
शोधकार्य का अंतर अनुशासनीय दृष्टि से महत्व (Interdisciplinary Approuch)
अनुसंधान की एक निश्चित पद्धति है ; जिसे अनुसंधान प्रविधि कहा जाता है| इस प्रविधि के अनुसार ही शोध कार्य होना चाहिए| इस प्रविधि से, किसी भी संकाय के किसी भी विषय में शोध करनेवाले शोधकर्ता को परिचित होना जरुरी होता है| प्रो. यशपाल ने भारतीय ज्ञान आयोग द्वारा अंतर अनुशासनीय अध्ययन के महत्व को सबसे पहली बार प्रतिपादित किया| उसके बाद अंतर अनुशासनीय दृष्टि से किए जानेवाले अध्ययन का महत्व बढ़ गया| विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अंतर अनुशासनीय शोध पर बल देता है| लघु और बृहत प्रकल्प कार्य को स्वीकृति देते समय शोध विषय का अंतर अनुशासनीय दृष्टि से महत्व देखा जाता है| यह जो छोटा सा प्रकल्प कार्य किया जा रहा है इसका महत्व तो सभी ज्ञान शाखाओं की दृष्टि से है| अनुसंधान प्रविधि का अध्ययन किए बिना किसी भी विषय में शोध कार्य किया ही नहीं जा सकता| शिमला में आयोजित १२४ वे उन्मुखी कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों के १६ विषयों के प्रतिभागी सम्मिलित है| इन सभी की दृष्टि से इस विषय का महत्व है| इनमें कुछ शोध निर्देशक हैं, कुछ विद्यावाचस्पति है, कुछेक को अभी विद्यावाचस्पति बनना है| सभी की दृष्टि से इस विषय का महत्व निर्विवाद है| यह शोध प्रकल्प अंतर अनुशासनीय शोध प्रकल्प है|
शोध विषय का राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से महत्व
ऊपर बताया जा चुका है अनुसंधान के क्षेत्र में भारत बहुत पिछड़ रहा है| विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विद्यावाचस्पति उपाधि के लिए पंजीकृत शोधार्थियों के लिए एक पाठ्यक्रम (Ph.D. Course – Work) अनिवार्य किया है| इस पाठ्यक्रम में चार प्रश्नपत्रों में पहला प्रश्नपत्र अनुसन्धान प्रविधि का भी है| हमारे यहाँ बहुत अच्छी –अच्छी योजनाएँ बनती है ; परंतु अमल में लाते समय उसका मूल रूप बच नहीं पाता, यह वास्तविकता सर्वविदित है| किसी भी योजना का प्रत्याभरण (Feed –Back) लेने की पद्धति का अभाव यहाँ है| यदि अनुसंधान प्रविधि का गंभीरता से पालन होता तो हम अनुसन्धान के क्षेत्र में अव्वल न सही, पहले २५ में तो होते| यह प्रश्न अनुसंधानकर्ता को भी छलता है| यह अनुमान जरुर लगाया जा सकता है कि कही कोई सुराख जरुर हो सकता है; जिसके कारण अनुसंधान प्रविधि का गंभीरता से अध्ययन नहीं हो रहा है| इस सुराख को ढूँढ़ने का प्रयास ; यह शोध कार्य है| इस पाठ्यक्रम की व्यावहारिकता का स्वरूप क्या है? जमीनी स्तर पर यह प्रविधि पहुँच चुकी है क्या ; इसे पहचानना राष्ट्रीय कार्य है और इसमें सुधार के लिए बूँद भर किया गया प्रयास भी अंतर्राष्ट्रीय महत्व की ओर संकेत करता है|
पुनरावलोकन (View of Research and Development in the Subject)
शोध प्रविधि पर अंग्रेजी, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में दर्जनों किताबें लिखी गयी हैं| परंतु इस प्रविधि का व्यावहारिक स्तर पर कितना पालन होता है इस विषय पर हमारी जानकारी में कोई शोध कार्य नहीं हुआ है| शोध-गंगा पर भी इस विषय के बारे में जानकारी लेने का प्रयास किया गया ; परन्तु इस पद्धति का एवं इस प्रकार के विषय पर अभी तक कोई शोध कार्य नहीं हुआ है| इस विषय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि नमूने के तौर पर विविध भू – भागों से संबंधित तथा विभिन्न विषयों से संबंधित शोध निर्देशकों, विद्यावाचास्पतियों, शोधार्थियों के प्राध्यापकों का ३१ लोगों का समूह मिलना दुर्लभ बात है| इस प्रकार के नमूने का चयन कर शोध कार्य नहीं किया गया है, ऐसा हमारा मानना है|
शिमला में आयोजित १२४वे उन्मुखी कार्यक्रम के अंतर्गत प्रतिभागियों को एक परियोजना (Project) का कार्य पूरा करना होता है| यह कार्य सामूहिक शोध को बढ़ावा देनेवाला कार्य है| सामुहिक अनुसंधान में प्रवृत्त कराना भी समय का तकाज़ा है, जरुरत है| अत: सामूहिक रूप से यह सोचा गया कि क्यों न यू.जी.सी. – एच.आर.डी. सी. शिमला द्वारा आयोजित १२४ वे उन्मुखी कार्यक्रम में सम्मिलित ३१ प्रतिभागियों के इस छोटे से समूह को नमूने के तौर पर चयन कर अध्ययन किया जाएँ? यह एक सुअवसर है ; क्योंकि प्रतिभागियों का यह समूह देश के विभिन्न भू – भागों से जुड़ा है तथा विभिन्न विषयों से संबधित है| ये प्रतिभागी अनुसंधान प्रविधि से परिचित हैं क्या? इन प्रतिभागियों ने अपने शोधकार्य में अनुसंधान प्रविधि का पालन किया है क्या? परिकल्पनाएँ (Hypothesis), शोधकार्य का उद्देश्य (Objectives) और शोधकार्य के निष्कर्ष (Findings) के बारे में वे जानते हैं क्या? अपने शोध प्रबंध में उन्होंने परिकल्पनाएँ (Hypothesis), शोधकार्य का उद्देश्य (Objectives) और शोधकार्य के निष्कर्ष (Findings) स्पष्ट रूप से दिए हैं क्या? आदि बातें जानने की दृष्टि से यह समूह इस कार्य में प्रवृत्त हुआ है|
परियोजना की परिकल्पनाएँ (Hypothesis)
- अधिकतर शोधार्थी अनुसंधान प्राविधि से परिचित नहीं होते हैं |
- अनुसंधान प्राविधि से परिचित होने के बावजूद परिकल्पनाएँ स्पष्ट रूप से लिख नहीं पाते हैं| साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत शोधार्थियों में यह स्थिति और भी चिंताजनक है|
- शोधकार्य किसलिए किया जा रहा है इसका स्पष्ट चित्र शोधार्थी के दिमाग में नहीं होता| भिन्न संकायों के शोधार्थियों में यह स्थिति अलग-अलग हो सकती है|
- शोधकार्य के अंत में शोधार्थी बहुत स्पष्ट रूप में निष्कर्ष नहीं दे पाता| भिन्न संकायों के शोधार्थियों में यह स्थिति भी अलग-अलग हो सकती है| विज्ञान और वाणीज्य में निष्कर्ष स्पष्ट रूप से आने का औसत अधिक है| कला संकाय के शोधार्थियों में और विशेष कर साहित्य के क्षेत्र के शोधार्थी निष्कर्ष दे नहीं पाते|
परियोजना के उद्देश्य (Objectives)
- एच.आर.डी.सी. शिमला द्वारा आयोजित १२४ वे उन्मुखी कार्यक्रम में सम्मिलित प्रतिभागियों के शोधकार्य का अवलोकन करते हुए अनुसंधान प्रविधि का पालन करनेवाले शोधार्थियों का औसत जानना | यह औसत भिन्न – भिन्न संकायों के अनुसार भिन्न है क्या – इसे पहचानना|
- शोधकार्य की परिकल्पनाएँ (Hypothesis), शोधकार्य के उद्देश्य (Objectives) तथा शोधकार्य के निष्कर्ष स्पष्ट रूप में उल्लिखित करनेवालों का औसत भिन्न – भिन्न संकायों के अनुसार जानना |
- प्राप्त औसत के अनुसार सुधार के उपायों पर भिन्न-भिन्न संकाय के अनुसार उपायों पर विचार करना
- पीएच. डी. उपाधि प्राप्त करने हेतु कार्यरत शोधार्थियों को अनुसंधान प्रविधि के प्रति सचेत करना|
- शोधकार्य की परिकल्पनाएँ (Hypothesis), शोधकार्य के उद्देश्य (Objectives) तथा शोधकार्य के निष्कर्ष के स्वरुप की समझ बढ़ाना तथा अपने शोधकार्य में स्पष्ट रूप से इसका उल्लेख करने के प्रति शोधार्थियों को सतर्क करना|
उन्मुखी कार्यक्रम की २८ दिनों की समय सीमा में रोज के नियमित कामकाज के अलावा अनेकों कार्यों की व्यस्तता (कार्यालयीन कामकाज से विरत होने के बाद घर में किए जानेवाले काम) के साथ एक परियोजना का कार्य पूरा करना अपने आप में बहुत बड़ी कसरत है| बड़ी मुश्किल से ८-१० दिन का, रोज औसत डेढ़ या दो घंटे का समय मिलना भी कठिन रहा है| समय की सीमा का ध्यान रखकर यह कार्य करना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है| इस समूह ने सबसे पहले चर्चा कर विषय निश्चित किया| शोधकार्य की निश्चित रूप – रेखा बनने के बाद एक प्रश्नावली तैयार की गयी| यह प्रश्नावली सभी प्रतिभागियों में वितरित की गयी| सभी प्रतिभागियों से यह विनम्र निवेदन किया गया कि अधिक से अधिक दो दिन में यह प्रश्नावली भरकर वापिस दी जाए| प्राप्त जानकारी की गोपनीयता के प्रति प्रतिभागियों को आश्वस्त किया गया तथा संचालक एवं समन्वयक से भी इस विषय पर चर्चा की गयी| बावजूद प्रश्नावली भरकर आने में पांच से छह दिन का समय लगा| कुछ लोगों ने प्रश्नावली भरकर दी, कुछ विद्यावाचस्पति नहीं थे तो कुछ ने प्रश्नावली वापिस नहीं की| इस जानकारी को निम्न ग्राफ के माध्यमसे जाना जा सकता है –
आगे ग्राफ दिया जा रहा है – ग्राफ क्रमांक
- कुल प्रतिभागियों की संख्या
- प्रश्नावली भरकर देनेवालों की संख्या का ग्राफ
ग्राफ क्रमांक १. में कुल प्रतिभागियों की संख्या, जो विद्यावाचस्पति हैं उनकी संख्या तथा जो विद्यावाचस्पति नहीं हैं उनकी संख्या दर्शायी गयी हैं| यू.जी.सी. – एच. आर. डी. सी. समर हिल शिमला द्वारा आयोजित १२४ वे उन्मुखी कार्यक्रम में कुल ३१ प्राध्यापक सदस्य हैं| ये ३१ प्राध्यापक ११ राज्यों से संबंधित हैं पर ९ राज्यों में कार्यरत हैं | यह ९ राज्य इसप्रकार हैं – हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, आसाम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल| १६ विषयों से संबधित ये प्राध्यापक विज्ञान, वाणिज्य, कला, इंजीनियरिंग, पेंटिंग, संगीत, योगा, कंप्यूटर सायंस, फ़ूड टेक्नोलॉजी आदि संकायों से संबधित हैं| अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हमने इन्हें चार वर्गों में बाँटा है –
- वाणिज्य विभाग
- विज्ञान विभाग
- अन्य कलाएँ (Performing Art)
ग्राफ क्रमांक १. आगे दिखाया जा रहा है
उपर्युक्त ग्राफ क्र. २ में प्रश्नावली भरकर देनेवालों की संख्या दी गयी हैं| कुल ३१ प्रतिभागियों के ३१ फॉर्म वितरित किए गए| उनमें से २३ प्रतिभागियों ने फॉर्म भककर वापिस कर दिए| २३ में ०२ विद्यावाचस्पति नहीं हैं| शेष ०८ प्रतिभागियों में जिन्होंने फॉर्म वापिस नहीं किया उनमें ०४ विद्यावाचस्पति हैं तो ०४ विद्यावाचस्पति नहीं है| ३१ में से कुल २१ प्रतिभागियों की प्रश्नावली के आधारपर जो अवलोकन किया गया इसे निम्न रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है –
शोधकार्यों में उल्लिखित परिकल्पनाएँ (Hypothesis) : अवलोकन
परिकल्पना अर्थात शोध कार्य शुरू करने से पहले किए गए पूर्वानुमान है| ये पूर्वानुमान शोधकार्य के लिए निश्चित लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं| ये अनुमान हैं, सिद्ध हो भी सकते हैं या नहीं भी| यह एक विचार है जो स्वानुभव या परानुभव से भी होता है| शोधकार्य आरंभ करने के पूर्व परिकल्पना का निर्माण आवश्यक है या नहीं, इस पर मतभेद हैं इस मत को प्रतिपादित करते हुए डॉ विनयमोहन शर्मा लिखते हैं – “एक मत के अनुसार परिकल्पना तभी निर्मित की जा सकती है जब विषय का शोधकार्य काफी आगे बढ़ जाता है| क्योंकि शोधकार्य के पूर्व परिकल्पना की स्पष्ट कल्पना नहीं हो सकती| ———- — – – दूसरा मत – जो परिकल्पना को शोधकार्य के पूर्व आवश्यक मानते हैं| ये दोनों मत विषय के प्रकार को देखकर मान्य या अमान्य किए जा सकते हैं| १ परिकल्पना की व्याख्या करते हुए डॉ. तिलकसिंह लिखते हैं – “शोधकार्य में परिकल्पना या प्राक्कथन का शाब्दिक अर्थ है पूर्व का कथन अर्थात पहले कहना| शोध कार्य में प्राक्कथन का अर्थ है शोध क्षेत्र में प्रवेश की प्रेरणा, विषय विशेष के प्रति संस्कार, शोधकार्य की प्रक्रिया आदि का उल्लेख| २
प्रश्नावली में कई प्रतिभागियों ने परिकल्पना की व्याख्या निम्न रूप से की है –
- परिकल्पना का अर्थ है समस्या के उत्तर के रूप में प्रस्तावित अनुमानों को ही परिकल्पना कहा जाता है| – योगा प्राध्यापक 3
- परिकल्पना से अभिप्राय है कि जो कार्य हम अपने शोध में करना चाहते हैं उसकी एक रूपरेखा तैयार कर चलना कि मेरे इस शोधकार्य के पश्चात ये परिणाम निकलने चाहिए | – हिंदी प्राध्यापक 4
- It is a tentative and formal prediction about the relationship between two or more variables in the population being studied, and the hypothesis translates the research question in to a prediction of expected outcomes. So hypothesis is a statement about the relationship between two or more variables that we set out to prove or disprove in our research. Study. – Music Prof 5
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधारपर स्पष्ट होता है कि परिकल्पना शोधकार्य शुरू करने के पूर्व किया गया अनुमान या विचार है जो शोध के दौरान सिद्ध हो भी सकता है नहीं भी| एक परिकल्पना से दूसरी परिकल्पना जन्म लेती है| आज से ३० – ४० साल पहले परिकल्पना की अनिवार्यता के बारे में मतभेद था| आज अनुसंधान प्रविधि में इसे अधिक महत्व दिया जा रहा है| यह शोधकार्य की दिशा निश्चित करनेवाला सोपान है|
कुल २१ प्रश्नावलियों में से १७ शोधार्थियों ने अपने शोधप्रबंध में परिकल्पनाएँ दी हैं| ०४ शोधार्थियों ने परिकल्पनाओं का उल्लेख नहीं किया हैं| अर्थात १९.०४ % शोधार्थी परिकल्पना का अर्थ एवं स्वरूप नहीं जानते| एक दूसरा कारण परिकल्पनाएँ शोध विषय पर निर्भर होती है ऐसा कुछ विद्वानों का मानना है| इसलिए शोध विषय के अनुसार परिकल्पनाएँ कभी आवश्यक होती है तो कभी आवश्यक हो भी नहीं सकती| कुछेक शोधार्थियों की परिकल्पनाएँ अस्पष्ट हैं| कुछ शोधार्थी केवल उदेश्यों के आधारपर निष्कर्ष लिख रहे हैं|
विभिन्न शाखाओं के शोधार्थियों ने निम्न रूप में परिकल्पनाएँ दी हैं –
- कुल शोधार्थी २१ में कला संकाय के ०७ शोधार्थी हैं | ०७ शोधार्थियों में से ०६ ने परिकल्पनाएँ दी हैं| ०१ शोधार्थी ने परिकल्पनाएँ दी नहीं है| कला संकाय में परिकल्पानाओं का उल्लेख न करनेवाले शोधार्थियों का औसत १४.२८% है|
- कुल शोधार्थी २१ में से वाणीज्य संकाय के शोधार्थी ०३ हैं | ०३ शोधार्थियों में से ०२ ने परिकल्पनाएँ दी हैं| ०१ शोधार्थी ने परिकल्पनाएँ दी नहीं है| वाणीज्य संकाय में परिकल्पानाओं का उल्लेख न करनेवाले शोधार्थियों का औसत ३३.३३ % है|
- कुल शोधार्थी २१ में से विज्ञान संकाय के शोधार्थी ०९ हैं | ०९ शोधार्थियों में से ०८ ने परिकल्पनाएँ दी हैं| ०१ शोधार्थी ने परिकल्पनाएँ दी नहीं है| विज्ञान संकाय में परिकल्पानाओं का उल्लेख न करनेवाले शोधार्थियों का औसत ११.११ % है|
- कुल शोधार्थी २१ में से परफोर्मिंग आर्ट्स के शोधार्थी ०२ हैं | ०२ शोधार्थियों में से ०१ ने परिकल्पनाएँ दी हैं| ०१ शोधार्थी ने परिकल्पनाएँ दी नहीं है| परफोर्मिंग आर्ट्स में परिकल्पानाओं का उल्लेख न करनेवाले शोधार्थियों का औसत ५०.०० % है|
परिकल्पनाओं का उल्लेख न करनेवाले शोधार्थियों का औसत निम्न रूप से देखा जा सकता है- कला संकाय – १४.२८ %
वाणीज्य संकाय – ३३.३३ %
विज्ञान संकाय -११.११ %
परफोर्मिंग आर्ट्स – ५० %
इसे ग्राफ क्रमांक ३ द्वारा अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है|
- अनुसंधान प्रविधि में परिकल्पना का स्वरूप अधिक प्रभावपूर्ण पद्धति से समझाया जाए|
- शोध निर्देशक अपने शोधार्थियों को परिकल्पनाएँ लिखने के लिए निर्देशित करे|
- शोधार्थी की परिकल्पनाएँ निश्चित हुए बिना उसे शोधकार्य में आगे ना बढाएं | ताकि शोधार्थी की शोध के प्रति गंभीरता बढ़ेगी एवं रुचिकर विषय की ओर वह प्रवृत्त होगा|
उद्देश्य एवं निष्कर्ष : एक अवलोकन
शोध कार्य निश्चित उद्देश्य से किया जाता है| विज्ञान के क्षेत्र में नया आविष्कार या किसी समस्या का समाधान करना शोध है| | जैसे इसी उन्मुखी कार्यक्रम के अंतर्गत विविध होटलों में जो खाना परोसा जा रहा है उसके नमूने संग्रहित कर इस अन्न में कितनी मात्रा में जीवाणु है तथा यह अन्न मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं क्या ? इसका परीक्षण कर निष्कर्ष प्रस्तुत किए जा रहे हैं| यहाँ अन्न का परीक्षण कर मनुष्य स्वास्थ्य को बचाना शोध का उदेश्य है| वाणिज्य के क्षेत्र में भी इसी प्रकार किसी नए तथ्य की ओर अनुसंधानकर्ता संकेत करता है| साहित्य भले ही नया आविष्कार न करता हो पर साहित्य अध्ययन का नया आयाम, नई दृष्टि, नया विचार वह जरुर प्रस्तुत करता है| शोध कर्ता पहले से ही निश्चित लक्ष्य लेकर चलता है| अनुसंधान राष्ट्रीय कार्यों में उपयोगी होता है, देश की योजनाओं को दिशा देता है तथा समाज की पुनर्रचना करने में सहायक होता है|
उपर्युक्त उन्मुखी कार्यक्राम में सम्मिलित करीब करीब सभी प्रतिभागियों ने अपने शोध के उदेश्य स्पष्ट रूप से दिए हैं तथा निष्कर्ष भी प्रस्तुत किए हैं| इन शोध कार्यों के विषय जल, अन्न, जैव विविधता, नैनो पार्टिकल , ड्रग्स, इन्डियन स्टॉक मार्केट, निजीकरण, आर्थिक विकास, विशिष्ट भूभाग का भौगोलिक, अध्ययन, केमेस्ट्री के कई विषय, साहित्य में स्त्री, दलित, संगीत में वादन शैलियाँ, आधुनिकता बोध, युगबोध, संगीत का प्रभाव, वाद्य एवं राष्ट्रीयता, पुराण एवं गीता में आचरणीय मूल्य आदि हैं| जैसे एक प्रतिभागी का लक्ष्य कावेरी के जल की शुद्धता-अशुद्धता का अध्ययन करना है| अध्ययनोपरांत उन्होंने पाया कि कावेरी के जल में अशुद्धियाँ हैं| एक प्रतिभागी ने खमिर जनित अन्न का परीक्षण कर यह सिद्ध किया कि खमीर करके पकाया गया खाद्य स्वास्थ्य के लिए अच्छा और सुपाच्य है| एक प्रतिभागी ने उतरांचल राज्य के गठन के पूर्व तथा बाद की स्थितियों का अध्ययन कर यह निष्कर्ष रूप में पाया की उत्तरांचल राज्य के गठन के बाद राज्य एवं मंडल के आर्थिक विकास में गति आयी है| साहित्य के क्षेत्र की अध्ययन कर्ता ने लेखक की आधुनिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि किस तरह मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा में सहायक है इसे स्पष्ट किया| विश्व की आधी आबादी स्त्री की नई छवि प्रस्तुत कर लेखक किस तरह महिला सशक्तिकरण की प्रक्रिया को मजबूत बना रहा है ; इसकी ओर संकेत किया| तो कुछेक शोधार्थियों ने समाज में उपेक्षित तबका दलित की व्यथा कथा के माध्यमसे लेखक किस तरह इनकी स्थिति में बदलाव चाहता है इसकी ओर संकेत किया है| योगा के क्षेत्र में शोध कार्य कर गीता एवं भागवतपुराण के आचरणीय तत्वों की खोज कर मूल्य शिक्षा की राष्ट्रीय नीति में सहायता की है| कलाएँ संस्कृति की संरक्षक होती हैं| संस्कृति को बचाना है तो कला को बचाना जरुरी है यह निष्कर्ष देते हुए एक प्रतिभागी ने कलाकार (वादक) के प्रति सम्मान की भावना विकसित करने की दृष्टि से प्रयास किया है| महाविद्यालय के छात्रों पर संगीत के प्रभाव का अध्ययन कर एक प्रतिभागी ने संगीत के प्रभाव के करण छात्रों में आये परिवर्तनों को रेखांकित किया है|
उपर्युक्त विविध संकायों के विविध विषयों के शोध कार्य का अवलोकन करने के बाद निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि इन शोधकार्यों के उद्देश्य निश्चित ही राष्ट्रीय नीति में सहायक हो सकते हैं| तुलनात्मक शोध कार्य भी हो रहे हैं ; पर इस कार्य में अधिक स्पष्टता आना आवश्यक है| तुलनात्मक शोध कार्य की निश्चित दिशा अभी स्पष्ट होना आवश्यक है| तुलनात्मक शोध कार्य राष्ट्रीय सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देनेवाले होते हैं| वर्तमान समय अंतर अनुशासनीय ज्ञान शाखाओं का समय है| इन २३ शोधकार्यों में इसका अभाव दिखाई दिया है| साहित्य पर अनुसंधान हो रहे हैं परंतु भाषाओं का अध्ययन नहीं हो पा रहा| भाषावैज्ञानिक शोधकार्यों की कमी भी खलती है| इस परियोजना के शोधकर्ताओं का संबध साहित्य से होने के कारण अन्य संकायों में किस तरह के शोध कार्य होना अपेक्षित है यह बताने में शोधकर्ता असमर्थ हैं | यह इस शोधकार्य की सीमा भी है| इस परियोजना का लक्ष्य बहुत सीमित है| शोधकर्ताओं ने अपने शोधकार्य में परिकल्पनाएँ लिखी है या नहीं और उद्देश्य एवं निष्कर्ष स्पष्ट रूप से दिए गए हैं या नहीं ; केवल इसी का अध्ययन करना है|
यह परियोजना यू.जी.सी. – एच. आर. डी. सी शिमला द्वारा आयोजित १२४ वे उन्मुखी कार्यक्रम में सम्मिलित प्रतिभागियों के शोधकार्य में परिकल्पनाएँ, उद्देश्य, निष्कर्ष स्पष्ट रूप में दिए जा रहे हैं क्या यह देखने से संबधित है| अनुसंधान प्रविधि से संबंधित तथा अंतर अनुशासनीय यह शोध बहुत कम समय में पूरा किया गया है| शोध विषय बहुत सीमित है| जिस समूह का अध्ययन करना है वह केवल ३१ लोगों का समूह है | परंतु इस छोटे से समूह की सबसे अधिक सशक्त बात यह है कि यह समूह करीब – करीब भारत के व्यापक हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है| ११ राज्यों से जुड़े प्रतिभागी, ९ राज्यों में कार्यरत हैं और १६ विषयों से संबंधित हैं ; यह इस छोटे से समूह की विशेषता है| यह एक दुर्लभ योग है|
शोधकार्य के प्रारंभ में यह अनुमान लगाया गया था कि शोधकर्ता परिकल्पना के स्वरूप को नहीं समझता और न वह अपने शोध प्रबंध में स्पष्ट रूप से परिकल्पनाएँ दे पाता है| प्रश्नावली के आधारपर यह कहा जा सकता है कि यह बात १९.०४ प्रतिशत सच है | यह औसत भी कम नहीं है| अत: यह औसत कम करने की दृष्टि से प्रयास करने होंगे | विभिन्न ज्ञान शाखाओं में इसका औसत कम अधिक है| परफोर्मिंग आर्ट्स में यह बात ५० % सच है तो सबसे कम औसत अर्थात केवल ११.११ % विज्ञान शाखा का है| यह भी अनुमान था कि कला संकाय के लोग परिकल्पनाएँ लिख नहीं पाते| न जाननेवालों में इसी शाखा के लोगों का औसत अधिक होगा| पर शोध कार्य के अंत में यह पता चला कि ८५.७२ % लोग इस प्रविधि से परिचित हैं| साथ ही यह कहना आवश्यक है कि शोधकार्य के उद्देश्य से ये शोधकर्ता भली-भाँती परिचित हैं तथा निष्कर्ष भी स्पष्ट रूप से लिख रहे हैं| अनुसंधान कर्ता को शोध के नए – नए विषयों की ओर बढना चाहिए| खासकर इन सभी शोध प्रबंधों में एक भी प्रबंध अंतर अनुशासनीय नहीं है| वर्तमान समय में अंतर अनुशासनीय शोधकार्यों की ओर बढना अनुसंधान कर्ता का दायित्व है| शोधनिर्देशक को इस प्रकार के शोध कार्यों की पहल करनी चाहिए|
सन्दर्भ ग्रंथ सूची
- शोध प्रविधि – डॉ. विनयमोहन शर्मा, नेशनल पब्लिशिंग हाउस , नयी दिल्ली ११०००२, संस्करण १९८० – पृ. ३५.
- नवीन शोध विज्ञानं – डॉ. तिलक सिंह, प्रकाशन संस्थान, वसू -२२ नवीन शहादरा, दिल्ली – ११००३२, प्रथम संस्करण १९८२ – पृ. संख्या १५५
संलग्न – ग्राफ
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शोध : अर्थ, परिभाषा और स्वरूप , अंतरविषयी, बहुविषयी और परा विषयी अध्ययन का विश्लेषण, शोध और बोध से ही राष्ट्र का विकास संभव-महेश तिवारी, अंतरविषयी, बहुविषयी और परा विषयी अध्ययन का विश्लेषण: डॉ. अमित राय, कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें.
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शोध परिकल्पना का अर्थ परिभाषा प्रकृति स्रोत |Research hypothesis meaning definition nature source
शोध परिकल्पना का अर्थ परिभाषा प्रकृति स्रोत
शोध परिकल्पना प्रस्तावना :
परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता है। बिना परिकल्पना के अनुसन्धा उद्देश्यहीन तथा बिन्दुहीन होता जाता है। बिना किसी अच्छे अर्थ के परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं इसलिये परिकल्पना का आकार मिश्रित तथा कठिन तथा लाभ से परिपूर्ण होता है। परिकल्पना का स्वरूप बड़ा एवं करीब होने पर इसके आकार को रद्दोबदल कर अनुसन्धान के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं किया जायेगा तो अनुसन्धानकर्ता अनावश्यक एवं तथ्यहीन आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।
शोध परिकल्पना का अर्थ :
परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।
परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाषीकरण के पश्चात् उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है , अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है , यह निश्चित करने के पश्चात उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है। अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है।
वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है ।
परिकल्पना की परिभाषा :
परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। जो निम्न है
" करलिंगर ( Kerlinger) -
" परिकल्पना को दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन मानते हैं।
मोले ( George G. Mouley) -
" परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता , उपयोग , अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करना है ।"
गुड तथा हैट ( Good & Hatt ) -
" परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है । परिकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है , और गलत भी।"
लुण्डबर्ग ( Lundberg ) -
" परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है। "
मैकगुइन ( Mc Guigan ) -
" परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य कथन है। "
अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जॉच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।
परिकल्पना की प्रकृति :
किसी भी परिकल्पना की प्रकर्षत निम्न रूप में हो सकती है
1. यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये ।
2. इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की केन्द्रित करना चाहिए ।
3. इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।
4. यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।
5. यह प्रकर्षत के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए ।
परिकल्पना के स्रोत :
परिकल्पनाओ के मुख्य स्रोत निम्नवत है
1 समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन -
समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
2 विज्ञान
विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।
3 संस्कृति
संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कतिक मूल्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं का जन्म होता है।
4 व्यक्तिगत अनुभव
व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार होता है , किन्तु नये अनुसंध कर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही सम्पन्न होता है , उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही सरलता होती है।
5 रचनात्मक चिंतन
यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर ने विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं. ( i) तैयारी ( ii) विकास - ( iii) प्रेरणा और ( iv) परीक्षण । अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास किया , उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली , परिकल्पना निर्माण और परीक्षण किया ।
6 अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -
अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।
7 पूर्व में हुए अनुसंधान -
सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना का सज्जन किया जा सकता है।
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Hypothesis के हिन्दी अर्थ, संज्ञा .
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Hypothesis की परिभाषाएं और अर्थ अंग्रेजी में, hypothesis संज्ञा.
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- "a scientific hypothesis that survives experimental testing becomes a scientific theory"
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hypothesis के समानार्थक शब्द
A hypothesis is a proposed explanation for a phenomenon. A scientific hypothesis must be based on observations and make a testable and reproducible prediction about reality, in a process beginning with an educated guess or thought.
किसी घटना की व्याख्या करने वाला कोई सुझाव या अलग-अलग प्रतीत होने वाली बहुत सी घटनाओं के आपसी सम्बन्ध की व्याख्या करने वाला कोई तर्कपूर्ण सुझाव परिकल्पना (hypothesis) कहलाता है। वैज्ञानिक विधि के नियमानुसार आवश्यक है कि कोई भी परिकल्पना परीक्षणीय होनी चाहिये।
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शोध परिकल्पना का निर्माण (Formulation of Research Hypothesis)
- Post author: admin
- Post category: Research Aptitude / Research Methodology / UGC NET
परिकल्पना : उद्देश्य, महत्व एवं प्रकार
परिकल्पना एक मानवीय चिंतन है जो वैज्ञानिक प्रक्रिया पर आधारित होता है। बिना मानवीय चिंतन के परिकल्पना की उत्पत्ति नहीं हो सकती। परिकल्पना शोधकर्ता को एक नई दिशा प्रदान करती है। परिकल्पना के बिना शोधकर्ता अपने अध्ययन में एक कदम आगे नहीं बढ़ सकता है। परिकल्पना के आधार पर किसी भी शोध समस्या के उत्पन्न होने के कारण तथा उसके मुख्य तथ्यों की जानकारी मिल पाती है। इस प्रकार परिकल्पना शोध अध्ययन का पूर्व नियोजित मार्ग या पथ है जो शोधकर्ता को दिशा प्रदान करता है। परिकल्पना एक ऐसा कार्यवाहक तार्किक वाक्य, पूर्व नियोजित विचार, पूर्वानुमान या धारणा है जिसे शोधकर्ता स्वयं शोध विषय वस्तु की प्रकृति के आधार पर शोध प्रारंभ करने से पहले ही निर्मित करता है। शोधकर्ता अपने शोध के दौरान इस परिकल्पना की जांच करता है। यह परिकल्पना सत्य या असत्य हो सकती है। यदि शोध विषय में संकलित एवं विश्लेषक तथ्यों के आधार पर परिकल्पना प्रमाणित हो जाती है तो मान लिया जाता है कि शोध समस्या भी इन्हीं कारणों या चरों की उपज है। शोध समस्या के निर्माण में परिकल्पना से संबंधित कारणों की खोज करना /अध्ययन करना तथा कारणों का विश्लेषण कर उसकी सत्यता या असत्यता की जांच करते हुए शोध समस्या का निर्धारण किया जाता हैं।
- शोध प्रक्रिया को सही दिशा प्रदान करने के लिए शोध परिकल्पना का प्रतिपादन करना अत्यंत आवश्यक है। शोध में आंकड़े के संकलन और विश्लेषण के पूर्व शोध के परिणामों का अनुमान करना परिकल्पना है। यह परिकल्पना पूर्व निर्धारित सिद्धांतों अथवा आनुभविक विचारों के आधार पर शोध परिकल्पना का निर्माण किया जाता है। यह एक बुद्धिमत्तापूर्ण भविष्यवाणी है जो शोध-निष्कर्ष निकालने में सहायक होता है।
- परिकल्पना शोध अध्ययन की सही और निश्चित दिशा का निर्धारण कर शोध अध्ययन को सीमित करने में सहायक, आंकड़े संकलन में उपयोगी, शोध-निष्कर्ष निकालने में सहायक सिद्ध होता है।
- परिकल्पना का निर्माण करते समय विशेष रूप से निर्धारित उद्देश्य एवं उनकी प्राप्ति के साधनों पर पुनर्विचार करना चाहिए ताकि परिकल्पना का निर्माण और उसकी जांच की जा सके।
- शोध परिकल्पना को सरल (Simple), विधि उन्मुख (Method Oriented), वैज्ञानिक (Scientific), वस्तुनिष्ठ (Objectivity), सत्यपनीय (Verifiable) तथा तार्किक परीक्षण योग्य (Logically Testable) होनी चाहिए जो शोध समस्या का स्पष्ट उत्तर दे सके। यह परिकल्पना की मुख्य विशेषता है।
परिकल्पना का न कोई रूप है और ना ही कोई सर्वमान्य वर्गीकरण। किंतु वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित प्रकल्पना निम्न प्रकार होते हैं।
- शून्य परिकल्पना (Null Hypothesis) – ‘Null’ जर्मन जर्मन भाषा के शब्द है जिसका अर्थ शुन्य होता है। इसे शून्य परिकल्पना या अप्रमाणित या अशुद्ध परिकल्पना कहते हैं। नल- परिकल्पना अर्थात शून्य परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसमें दो चराें में संबंध ज्ञात करने पर पता चलता है कि उसमें कोई अंतर नहीं है। अर्थात ऐसी परिकल्पना जिसके अध्ययन करने से कोई नया सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं हो सकता है। यह दिखावा मात्र होता है।
- जटिल/उपयोगी परिकल्पना (Complex/Useful Hypothesis) – उपयोगी परिकल्पना शोध अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस परिकल्पना को आधार मानकर सिद्धांत निर्माण एवं सामान्यीकरण किया जा सकता है ऐसी परिकल्पना की जांच एवं विश्लेषण की जा सकती है एवं उसकी सत्यता या असत्यता की जांच कर प्रमाणित या अप्रमाणित सिद्ध किया जा सकता है।
परिकल्पना की जांच अनुमान पर आधारित होता है जब तक अनुभवाश्रित अनुमानित परिकल्पना प्रमाणित नहीं हो जाती है तब तक उसे विज्ञान न स्वीकृत करती है और न ही जनमत उसको मान्यताएं प्रदान करती है। इसलिए परिकल्पना की जांच या परीक्षण करना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य होता है। ताकि वह सिद्धांत का रूप ले सके। शून्य- परिकल्पना (Null-Hypothesis) मूल्यहीन होती है इसकी परीक्षण की आवश्यकता नहीं है और ना ही उपयोगी। केवल उपयोगी परिकल्पना की जांच की जाती है। परीक्षित परिकल्पनाऐं सिद्धांत या नियम को जन्म देती है। परिकल्पना के परिक्षण के दो पद्धतियां मुख्य हैं – पैरामेट्रिक टेस्ट (Parametric test) और नॉन-पैरामेट्रिक टेस्ट (Non-Parametric test) ।
- पैरामेट्रिक टेस्ट के अंतर्गत अनोवा (ANOVA), टी-टेस्ट (T-test), जेड-टेस्ट (Z-test) आते हैं।
- नॉन-पैरामेट्रिक टेस्ट के अंतर्गत चाई-स्क्वायर टेस्ट (Chi-Squire test), Kruskel Wall’s, Mann-Whitney, आदि आते हैं।
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hypothesis का अनुवाद - अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश
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( Cambridge अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश से hypothesis का अनुवाद © Cambridge University Press)
hypothesis के उदाहरण
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HYPOTHESIS MEANING IN HINDI - EXACT MATCHES
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Definition of hypothesis.
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